जूठन ओमप्रकाश वाल्मीकि सारांश और Objective
जूठन – ओमप्रकाश वाल्मीकि ऑब्जेक्टिव
ओमप्रकाश वाल्मीकि का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर : 30 जून 1950 ईस्वी को |
ओमप्रकाश वाल्मीकि का जन्म स्थान कहां है ?
उत्तर : मुजफ्फरपुर के उत्तर प्रदेश में हुआ था |
ओमप्रकाश वाल्मीकि उनके माता-पिता का नाम ?
उत्तर : मकुंदी देवी और पिता छोटन लाल था |
ओमप्रकाश वाल्मीकि का निधन कब हुआ था ?
उत्तर : ओम प्रकाश वाल्मीकि जी का निधन 17 नवंबर 2013 को हो गया था |
ओमप्रकाश वाल्मीकि शिक्षा : अक्षर ज्ञान का प्रारंभ मास्टर सेवक राम मसीही के बिना कमरे बिना चटाई वाले स्कूल में पढ़े थे उसके बाद बेसिक प्राइमरी स्कूल में दाखिल हुए थे | 11वीं की परीक्षा इंटर कॉलेज बर्ला से उत्तीर्ण किए थे | लेकिन 12वीं की परीक्षा में अनुत्तीर्ण के फलस्वरुप बरला कॉलेज छोड़कर डीएवी इंटर कॉलेज देहरादून में दाखिल होना पड़ा | कई वर्षों तक पढ़ाई बाधित हुए | 1992 ईस्वी में हेमंती नंदन बहुगुणा गढ़वाल श्रीनगर विश्वविद्यालय में हिंदी में एम ए की |
ओमप्रकाश वाल्मीकि वृत्ति : 12वीं कक्षा में ही और दिनेश फैक्ट्री देहरादून फैक्ट्री देहरादून में अप्रैक्टिस की नौकरी किए | फिर फैक्ट्री चांदी का ( चंद्रपुर महाराष्ट्र में ) ड्राफ्ट्समैन की नौकरी की | संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के उत्पादन विभाग में अधीन फैक्ट्री की ऑटो इलेक्ट्रॉनिक्स फैक्ट्री देहरादून में अधिकारियों के रूप में कार्य किए थे |
ओम प्रकाश बाल्मीकि को सम्मान मिले : डॉ भीमराव अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार ( 1993 ईस्वी ) परिवेश सम्मान ( 1995 ईस्वी )
जय श्री सम्मान ( 1996 ईस्वी ) कथाक्रम सम्मान ( 2000 ईस्वी ) इन सारे इन्हें सम्मान मिले थे |
ओम प्रकाश बाल्मीकि कृतियां : जूठन आत्मकथा सलाम बैठे कहानियों का संता व्यस्त बहुत हो चुका था अब और नहीं कविता संकलन दलित साहित्य का सुंदर आलोचना हुआ था |
जूठन ओमप्रकाश वाल्मीकि सारांश
ओम प्रकाश बाल्मीकि पिछले दशक में हिंदी में आए समाज सुधार और गहरे राजनीति के चेतना के कारण दक्षिण अफ्रीका से महाराज उत्तर प्रदेश की सचित्र हिंदी में जितना दलित एवं अवधारणा का विकास हुआ था | वैज्ञानिक अरे दृष्टि समाजवादी बेचारी जागरण मानवाधिकार और लोकतंत्र के युग में समानता के उत्तर और राजनीतिक सद्भाव की दिशा में अपना कॉल कब करना चाहिए सामाजिक राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में दिखाई पड़ते पिछड़ा दलित उभार और संप्रदाय जाति लिंग आदि के विरोध आंदोलन के पीछे की काम शंकर और विचार का सही सारा यही था ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा जूठन के व्यापक वर्ग के ध्यान आकृष्ट किया करते थे | यह आत्मकथा यहां प्रस्तुत अंशदान के रूप में आया है अंश के आत्मकथा पढ़ने की जगती है इसका आत्मकथा संस्कृत अतिरंजित और है | माटी और पानी श्री कारण ही इसके रचना की विशेषता है संवेदना और के कारण प्रस्तुत अंश मन पर गहरा असर छोड़ दिया था | रोज हेड मास्टर कलीराम को अपने कमरे में बुलाकर पूछा था क्या नाम है तेरा ओमप्रकाश डरते डरते धीमे स्वर में अपना नाम बताता था | हेड मास्टर को देखते बच्चे चुपचाप हो जाते थे | पूरे स्कूल में नाम था उनका | चूहड़े सही है ? ‘’ मास्टर का दूसरा सवाल उछाला
हां जी |’’’
ठीक है जो सामने शीशम का पेड़ खड़ा है तुम उस पर चढ़ जाओ और पहेलियां छोड़कर झाड़ बना ले अति वाला झाड़ू बनाना है| पूरे स्कूल ऐसा चमका दे जैसा कि सिस्टम चमक रहा है| तुम्हारा काम तो खानदानी है जाओ जल्दी फटाफट लग जाओ काम पर |
आदेश सामने आने पर कमरे बरामद साफ कर दिए थे तभी वह खुद चक्कर आया और बोला इसके बाद मैदान भी साफ कर देना |
दूसरे दिन वह स्कूल पहुंचा | उसको जाते ही हेड मास्टर ने झाड़ू के काम पर लगा दिया करता था | सारा दिन झाड़ू वह देता रहता था | उनका मन में एक तसल्ली थी कि कल से कक्षा में बैठ जाऊंगा | तीसरे दिन कक्षा में जाकर चुपचाप पीछे बैठ गया | कुछ देर बाद उनकी दहाड़ सुनाई दी | उसका दहाड़ सुनकर मैं थर थर कांपने लगा था | त्यागी लड़के ने चिल्लाकर कहा मास्टर साहब बैठा है वह पुणे में |
लपक कर हेड मास्टर ने मेरी गर्दन को जोर से दमोच लिया| उसका अंगुलियों का दबाव मेरी गर्दन पर बढ़ रहा था | जैसे कोई सीयार बकरी के बच्चे को दबोच कर उठा लेताहै क्लास से बाहर लाकर बरामदे में पटक दी | जोर से बोले जाओ पूरा मैदान में झाड़ू आज लगाओ | मेरे पिताजी अचानक स्कूल के पास से ही गुजर रहे थे | और मुझे वह स्कूल के मैदान में झाड़ू लगाते देखकर गुस्से में हो गए | और पिताजी की आवाज पूरे स्कूल में गूंज रही थी | और जिसे सुनकर हेड मास्टर सहित सभी मास्टर बाहर आ गए थे | काली राम हेड मास्टर ने गाली देकर मेरे पिताजी को धमकाया | लेकिन पिताजी की धमकी पर कोई असर नहीं पड़ा | उसे रोज जिस साहस और हौसले से पिताजी ने हेड मास्टर का सामना किया उसे कभी नहीं भूल पाऊंगा |
इन सब कामों के बदले में मिलता था दो जानवर पीछे फसल के समय 5 शेर अनज यानी लगभग ढाई किलो अनाज मिलता था | 10 मवेशी वाला घर से साल भर में2.5 शेर ( 12-13) अनाज मिलता | दिन-रात मर कर भी हमारे पसीने की कीमत मात्र झूठ है फिर भी किसी को कोई शिकायत नहीं करता था | कोई शर्मिंदगी नहीं कोई पहचान नहीं | जब मैं छोटा था मां के साथ जाता था | और माता पिता का हाथ बताने का तनाव के खाने को देखकर अक्सर सोचा करता था कि हमें ऐसा अनाज क्यों नहीं मिलता है | सोचता हूं कि आज मिलने वाला है | इसके पिछले बरस मेरे निवास पर सुखदेव सिंह त्यागी का पुत्र सुरेंद्र सिंह आया था तब किसी इंटरव्यू के सिलसिले में गांव के मेरा पता लेकर आया था कि रात में | और मेरी पत्नी ने उसे यथासंभव अच्छा खाना खिलाया | और खाना खाते खाते हुए बोला भाभी जी आपके हाथ का खाना तो बहुत ज्यादा अच्छा लगा बरात खाना खा रही थी मां टोकरी की दरवाजे पर बैठी हुई थी | मैं मेरी छोटी बहन माया मां से लिपटे बैठी थी इस उम्मीद के भीतर जो मिठाई और पकवानों की महक आ रही थी वह हमें भी खाने को मिलेगा क्या |चमड़ा खरीदने वाला दुकानदार हाल में बहुत मीन मेक निकालता था | जाने पर हाल बेकार हो जाती थी तो हाल को निकालते हैं उस पर लगाना पड़ता था, वरना दूसरे खाल खराब हो जाती थी जिसे दुकानदार मना कर देता था | मां परेशान हो गई थी बैल की खाल उतारने की से भेजें ? बस्ती में एक दो लोग थे लेकिन कोई भी उस समय जाने को तैयार नहीं था | माने चाचा से बात की | वे तैयार हो गए | लेकिन उनके साथ हो जाना चाहिए था वह अकेले नहीं उतार पाएंगे | चाचा ने खान उतारने शुरू की | मैं उनकी मदद कर रहा था | चाचा को धीरे धीरे चल रहा था | पिताजी जैसी कुशलता उनमें नहीं थी | थोड़ी देर बाद में थक कर बीड़ी पीने बैठ गए चाचा ने एक पूरी मेरे हाथ में पकड़ा दी | बोले, धीरे-धीरे खाल उतारो अकेले तो शाम तक नहीं उतर पाएगी चाचा ने खाल को चादर में बांध दिया था | गठरी उठाकर सर पर रख ली थी | मुझे उस हालात में देख कर मारो पड़ी थी सिर से लेकर पांव तक गंदगी से भरा हुआ था | कपड़ों पर खून के धब्बे साफ दिखाई दे रहे थे | बड़ी भाभी ने उससे कहा था, इनसे ना कराओ भूखे रहने इन्हें जिंदगी में ना घसीटे भाभी के आगे मेरे लिए अंधेरे में रोशनी बन कर सकते हैं मैं गंदगी से बाहर निकल आया हूं लेकिन लाखों लोग आज भी जिंदगी को जी रहे हैं|