एक लेख और एक पत्र || भगत सिंह || एक लेख और एक पत्र सारांस और महत्वपूर्ण प्रशन

एक लेख और एक पत्र  भगत सिंह, Ek Lekh aur ek Patra Bhagat Singh

एक लेख और एक पत्र  के लेखक ; ( भगत सिंह ) 

 भगत सिंह  जन्म 28 सितंबर 1907 

 जन्म स्थान : बंगा चक , नंबर 105 ,गुगैर  ब्रांच , वर्तमान लालपुर  ( पाकिस्तान )  

पैतृक गांव : खटकड़कलां , पंजाब | 

माता और पिता का नाम ;  विद्यावती एवं सरदार किशन सिंह | 

शहादत :  23 मार्च 1931 ( शाम : 7: 33  मिनट पर ) लाहौर षड्यंत्र केस में फांसी

संपूर्ण परिवार स्वाधीनता सेनानी | पिता और चाचा अजीत सिंह लाल लाजपत राय की सहयोगी |  अजीत सिंह को मांडले जेल में देश  निकाला दिया गया था |  बाद में विदेशों में जाकर मुक्ति संग्राम का संचालन करने लगे |  छोटे चाचा सरदार स्वर्ण सीरी जेल गए और जेल की यात्रियों के कारण 1910 मैं उनका निधन हुआ |  भगत सिंह की शहादत के बाद उनके भाई कुलवीर सिंह और कुल तारसी को देवली कैंप जेल में रखा गया था जहां वे मिस 1946 तक रहे पीता अनेक बार जेल गए | 

शिक्षा : पहले 4 साल की प्राइमरी शिक्षा अपने गांव में |  फिर लाहौर के डीएवी स्कूल से वर्ग 9 तक की पढ़ाई की बाद में नेशनल कॉलेज ,  लाहौर से  ए और बी ए के दौरान पढ़ाई छोड़ दी और क्रांतिकारी दल में शामिल हो गए | 

प्रभाव : बचपन में करतार सिंह सराभा और  1944   एक गदर पार्टी के आंदोलन के प्रति आकर्षण |  सराभा के निर्भय कुर्बानी का मन पर अस्थाई और गहरा असर | 16  नवंबर   1915 को सराभाकी फांसी के समय भगत सिंह की उम्र 8  वर्ष थी |  वे  सराभा का चित्र जेब में ही रखते थे | 

 गतिविधियां :12  वर्ष की उम्र में जालियांवाला बाग की पट्टी लेकर क्रांतिकारी गतिविधियों की शुरुआत | 1922  मे चोरा चोरी कांड के बाद 15  वर्ष की उम्र में कांग्रेस और महात्मा गांधी से मोहभंग | 1923  में पढ़ाई और घर छोड़कर कानपुर गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र प्राप्त में सेवाएं दी |  शहरों में स्थापित की |  गई 1929  से 31 चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ का गठन किया और क्रांतिकारी आंदोलन के रूप में  छेड़ दिया | 8  अप्रैल 1929  को बूट के स्वर  दांत औ  राजगुरु के साथ केंद्रीय असेंबली में बम फेंका और गिरफ्तार हुए | 

 पहली गिरफ्तारी  अक्टूबर 1926  मैं दशहरा मेले में हुए बम विस्फोट के कारण मई 1927  में हुई | 

 कृतियां  :  पंजाब की भाषा तथा नीति की समस्या हिंदी में 1924  विश्व प्रेम कोलकाता के मतवाला में 1924  में प्रकाशित हिंदी लेख  , युवक (  मतवाला में 1924 मैं प्रकाशित हिंदी लेख | )  मैं  नागरिक क्यों हूं |  ( 1930-31 )  अछूत समस्या, विद्यार्थी और राजनीति,  सत्याग्रह और हड़ताल , बम का दर्शन भारतीय क्रांति का आदर्श आदि अनेक लेख टिप्पणियां एवं पत्र जो अलग-अलग पत्रकारों के द्वारा भगत सिंह के दस्तावेज के रूप में प्रकाशित हुए |

एक लेख और एक पत्र सारांश 

सचिंद्र नाथ सान्याल की पुस्तक वंशी जीवन और डॉन ब्रेन की आत्मकथा का अनुवाद |  जेल डायरी भी लिखी और निम्नांकित चार पुस्तक भगत सिंह के द्वारा लिखी बताई जाती है जो  अप्राप्य है –  समाजवाद का आदर्श आत्मकथा भारत के क्रांतिकारी आंदोलन का इतिहास और मौत के दस्तावेज पर है | अमर शहीद भगत सिंह आधुनिक भारतीय इतिहास की एक पवित्र स्मृति है |  भारत राष्ट्र के लोकमानस में उनकी युवा अभी अमित होकर बस गई है |  देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण का बलिदान कर देने वाला हजारों लोग तथा लाखों स्वाधीनता सेनानियों की प्रेरणा और उत्सर्ग पूर्ण कार्यों के वे स्थाई प्रतीक और प्रतिनिधि है |  उनके कार्यों और उनके बलिदान में जनता के हृदय में सदा सुलगती रहने वाले  राष्ट्रीयता की ज्योतिमरया  कितना का निर्माण किया है |  राष्ट्रीयता देशभक्ति क्रांति और युवा शक्ति के लिए प्रेरणा पुंज प्रतीक है |  यह अमर पद उन्होंने लगभग 23 वर्षों में ही हासिल कर लिया था |  भगत सिंह का विकास आराम से ही देश के प्रति समर्पित एक प्रबुद्ध नौजवान के रूप में हुआ था |  लाहौर छात्र जीवन में ही उनका संग साथ अपने ही जैसे लक्षण ईस्ट जागरूक युवकों से हो गया था |  इनमें अनेक आगे डालकर उनके  साथी क्रांतिकारी बने |  एक जागरूक छात्र के रूप में उनकी  त्रुटि देश दुनिय हलचल और इति विधियों पर हमेशा बनी रहे |  अपनी रुचि की पुस्तकें सहित राजनीति , दर्शन ; इतिहास पुस्तक हुआ करती थी |  उन्होंने खूब पढ़ी थी |  और उनसे प्राप्त ज्ञान के प्रकाश में अपने देश समाज रूचि विचार करते रहते थे |  उनकी मानसिक जागरूकता सोच विचार और खुद ही हुआ कारण थी कि वह घर छोड़ने के बाद में कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी के पास चले आए और वहां उनके पत्र प्राप्त को अपनी सेवाएं दी|  उन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर लगातार लेख लिखें और उनमें से अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित करवाएं | अमर शहीद भगत सिंह आधुनिक भारतीय इतिहास की एक पवित्र  समृति है |  भारत राष्ट्र के लोकमानस में उनकी युवा छवि अमित होकर बस गई है |  देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर देने वाले हजारों लोगों तथा लाखों स्वाधीनता सेनानियों की प्रेरणा और गर्भ उन कार्यों के वे स्थाई प्रतीक और प्रतिनिधि है |  उनके है |  राष्ट्रीयता ,  देश भक्ति ,  प्रांतीय और युवा शक्ति के हुए प्रेरणा पुंज प्रतीक है |  यह अमर पद उन्होंने लगभग 23 वर्षों में ही हासिल कर लिया था |  स्वाधीनता सेनानी के परिवार में जन्म पाकर उन्होंने बचपन में ही देश की स्वतंत्रता के लिए मर मिटने का अविस्मरणीय पाठ पढ़ लिया था |  उनके भीतर इच्छा,   संकल्प ,  विचार और कर्म की सुदृढ़  और शक्ति थी –  बचपन से लेकर उठान की युवावस्था की शहादत तक का उनका इतिहास यही साबित करता है |  देश और जनता के लिए क्रांति के स्वपन के रूप में उन्हें ऐसा कुछ प्राप्त हो गया था जिसके आगे मृत्यु भोज छोटी और पड़ गई |  नश्वर जीवन महिमा मूल्य बोध के चलते ही उन्होंने हंसते हंसते फांसी का फंदा अपने गले लगा लिया और झूल गए सचमुच वे उस  पथ पर बढे जिसके आगे राह नहीं थी |

एक लेख और एक पत्र  विद्यार्थी और राजनीति

 इस बात का बड़ा भारी तो सुना जा रहा है कि पढ़ने वाले नौजवान विद्यार्थी ,  राजनीतिक या पॉलिटिकल गांव में हिस्सा न ले |  पंजाब सरकार की राय बिल्कुल ही  न्यारी है |  विद्यार्थियों से कॉलेज में दाखिल होने से पहले इस आशय की शर्त पर हस्ताक्षर करवाए जाते हैं कि वे पॉलिटिकल कामों में हिस्सा नहीं लेंगे |  आगे हमारा दुर्भाग्य है कि लोगों की ओर से चुना हुआ  मनोहर , जो आप शिक्षा मंत्री हैं ,  स्कूलों कॉलेजों के नाम एक सर्कुलर या परिपत्र भेजता है कि कोई पढ़ने पढ़ाने वाला पॉलिटिक्स में हिस्सा न ले |  कुछ दिन हुए जब लाहौर में स्टूडेंट यूनियन या विद्यार्थी सभा की ओर से विद्यार्थी सप्ताह मनाया जा रहा था |  वहां भी सर अब्दुल कादर और प्रोफ़ेसर ईश्वर चंद्र नंदा ने इस बात पर जोर दिया कि विद्यार्थी को पॉलिटिक्स में हिस्सा नहीं लेना चाहिए |बात बड़ी सुंदर लगती है ,  लेकिन हम  इसे भी रद्द करते हैं ,  क्योंकि यह भी सिर्फ ऊपरी बात है |  इस बात से यह स्पष्ट हो जाता है कि 1 दिन विद्यार्थी एक पुस्तक ‘ अपील टू द यंग , पढ़ रहा था |  एक प्रोफेसर साहब कहने लगे |  यह कौन सी पुस्तक है ?  और यह तो किसी बंगाली का नाम जान पड़ता है |  लड़का बोल पड़ा –  प्रिंस  क्रोपोटकिन  का नाम बड़ा प्रसिद्ध है |   अर्थशास्त्र के विद्वान थे |  इस नाम से परिचित होना प्रत्येक प्रोफेसर के लिए बड़ा जरूरी था |  प्रोफेसर की योग्यता पर लड़का भी है पड़ा |  और उसने फिर कहा-  यह रूसी’ सज्जन  थे ‘ बस ‘ “  रूसी कह कर टूट पड़ा|  प्रोफ़ेसर ने कहा कि” तुम वास्तविक हो क्योंकि तुम पॉलिटिकल पुस्तकें पढ़ते हो “  देखिए आप प्रोफेसर की योग्यता |  अब उन बेचारे विद्यार्थियों को उनसे क्या सीखना है ?  ऐसी स्थिति में हुए नौजवान क्या सीख सकते हैं ?  दूसरी बात यह कि व्यावहारिक राजनीति क्या होती है ?  महात्मा गांधी,  जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस का स्वागत करना और भाषण सुनना तो हुई व्यवहारिक राजनीति पर कमीशन वायसराय का स्वागत करना क्या हुआ |?  या वॉल्टिक का दूसरा पहलू नहीं ?  सरकारों और देशों के प्रबंध से संबंधित कोई भी बात पॉलिटिक्स के मैदान में ही गिनी जाएगी ,  तो फिर यह भी पॉलिटिक्स हुई कि नहीं ?  कहां जाएगा कि इससे सरकार खुश होती है और दूसरी से नाराज ?  फिर सवाल तो सरकार की खुशियां नाराजगी का ही हुआ ?  क्या विद्यार्थियों को जन्मते ही गुस्सा मत का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए हम जो समझते हैं कि जब तक हिंदुस्तान में विदेशी डाकू नहीं ,  पशु हैं ,  पेट की गुलाम है तो हम किस तरह कह कि विद्यार्थी वफादारी का पाठ पढ़ें |  सभी मानते हैं कि हिंदुस्तान को इस समय ऐसे देश सेवकों की जरूरत है ,  जो तन मन धन देश पर अपनीत कर दें और पागलों की तरह सारी उम्र देश की आजादी के लिए निछावर कर दें |  इंग्लैंड की सभी विद्यार्थियों का कॉलेज छोड़कर जर्मनी के खिलाफ लड़ने के लिए निकल पड़ना पॉलिटिक्स नहीं थी ?  अब हमारे उद्देश्य कहां थे जो उनसे कहते- जाओ जाकर शिक्षा हासिल करो|  आज नेशनल कॉलेज अहमदाबाद के जो लड़के सत्याग्रह में वर्दोली वालों की सहायता कर क्या वे ऐसे ही मूर्ख रह जाएंगे ?  सभी देशों को आजाद करवाने वाले जहां के विद्यार्थी और नौजवान बचा पाएंगे ?  नौजवान 1919 में विद्यार्थियों पर किए अत्याचार भूल नहीं सकते |  वे यह भी समझते कि उन्हें एक बार क्रांति की जरूरत है |  पढ़ें  साथी पॉलिटिक्स का भी ज्ञान हासिल करें और जब जरूरत हो तो मैदान में कूद पड़े और अपना जीवन इसी काम में  लगा दे |  अपने प्राणों इसी में उपसर्ग कर दी वरना बचने का कोई उपाय नजर नहीं आता |

एक लेख और एक पत्र भगत सिंह 

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