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भारत का पुरातन राजेंद्र प्रसाद वस्तुनिष्ठ प्रशन और सारांश
वस्तुनिष्ठ प्रशन राजेंद्र प्रसाद
राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 18 से 84 ईसवी में सारण जिला में हुआ था ( बिहार) के जीरादेई गांव में हुआ है |उनके पिता का नाम महादेव सहाय है | एवं संस्कृत के अच्छे जानकार की | व पहलवानी और घुड़सवारी के शौकीन व्यक्ति थे | इन दोनों की शिक्षा उन्होंने अपने पुत्र राजेंद्र प्रसाद को ही दे दी थी | पहले उनका सबसे नामांकन छपरा के हाई स्कूल में करवाएं और वहां से आठवें दर्जे में रखी गई | वार्षिक परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त की | स्कूल के प्राचार्य ने प्राप्तांक में प्रसन्न होकर उन्हें दोहरी प्रतिनिधि दी | 190 2 ईसवी में वे कोलकाता विश्व विद्यालय की मैट्रिकुलेशन परीक्षा में प्रथम स्थान पाए थे | उसके बाद आई0 ए0 बी0 ए0 और बी ए एल प्रेसीडेंसी कॉलेज किए थे | 1911 ईस्वी में देख कलकत्ता में वकील दल में शामिल हो गए थे | 1916 इसी में जब पटना के एक अलग न्यायालय स्थापित हुआ था तब वकालत करने के लिए पटना भी चले गए थे | राजेंद्र प्रसाद का राजनीतिक जीवन उत्कृष्ट रहा था | संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष हुए थे तथा भारतीय गणतंत्र दिवस के प्रथम राष्ट्रपति भी हुए थे | और कोलकाता में वे जब छात्र थे तो उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण घटना घटी बंग भंग आंदोलन बजी | इसकी प्रतिक्रिया में देश में व्यापक उत्तेजना आ गई थी | बिहार टाइम्स के संपादक महेश नारायण और सच्चिदानंद सिन्हा का सहारा पार्क राजेंद्र प्रसाद ने बिहार स्टूडेंट कांग्रेस की स्थापना भी की थी | राजेंद्र प्रसाद ने कोलकाता हिंदी विद्वानों में संगीत की सबसे अहम व्यक्ति का हल आए थे और उनके चकरिया आए सहयोग में अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापित हुई थी | उनके लेखन की प्रक्रिया जीवन चलती रही थी | 18 फरवरी1963 ईस्वी में उनका निधन हो गया थाप्रस्तुत पाठ भारत का पुरातन विद्यापीठ नालंदा हमारे इतिहास की एक गौरवपूर्ण गाथा को हुए हैं कि आपातकालीन व्यवस्था की ऐसी की पैसा करती है कि इसमें हमारी प्राचीन एवं केंद्रों का महानतम स्वरूप दिखलाई पड़ता है |
भारत का पुरातन विद्यापीठ नालंदा
इतिहास में नालंदा हमारे अत्यंत आकाश नाम से प्रसिद्ध है जिसके चारों ओर केवल और केवल भारतीय ज्ञानसाधना सुरक्षित पुष्प खिले हुए हैं | अभी तू किसी समय एशिया महाद्वीप के विस्तृत भू-भाग के विद्या संबंधित सूत्र कि उसके साथ जुड़े हुए भी है| क्षेत्र में ज्ञान देश और जातियों के भेद लुप्त हो जाते हैं | उज्जवल नालंदा इसका दृष्टांत था | वानिकी एशिया नालंदा महाद्वीप और समुंदर पार तक फैल गई थी कि लगभग 2 वर्षों तक नालंदा और चेतन केंद्र और एशिया बना रहा था | तिब्बत के विद्वान इतिहास लेखक लामा तारा नाथ के अनुसार नालंदा सारी पुत्र की जन्मभूमि था एवं उनका चेक अशोक के समय में हुआ था और एक मंदिर बनवा राजा अशोक ने बनवाकर उसे परिवर्तित किया था | इस प्रकार नालंदा के प्राचीनतम की अनुभूति बुद्धा अशोक दोनों ने संबंधित में संपन्न हुआ था | एक प्रबंध विद्यापीठ के रूप में उनके जीवन का आरंभ लगभग गुप्त काल के समय में हुआ था तारा नाथू नागार्जुन और एवं इन दोनों को संबंध नालंदा से लगाया गया है और विचार किया जाता है कि जिस में सूर्य नाम के एक ब्राह्मण विद्वान अग्रणी थे |
चौथी शताब्दी में यात्रा में भी आए थे | और उन्होंने सारी पुत्र के जन्म और परिवार निर्माण में स्थान पर निर्मित स्तूप दर्शन भी किए थे | किंतु नालंदा ऐसा विशेष अयोग्य इसके बाद हुआ था |
शताब्दी शादी में सम्राट हर्षवर्धन के समय जब युवा न चांद इस देश में आया तो नालंदा अपनी 29 वे शिखर पर पहुंच चुका था | युवान सोंग एक जातक की कहानी का अलावा देते हुए लिखा था कि नालंदा नालंदा यह ना इसलिए पड़ा था कि यहां यहां कई देशों के पूर्व जन्म में उत्पन्न भगवान बुद्ध को स्थिति नहीं होती थी |( न- अल- दा) | और यह सच है कि ज्ञान के क्षेत्र में जो दान दिया जाता है वह सीमा रहित और अत्यंत होता है | ना कि उसके बांटने वाले तृप्ति होता है और उसे लिखने वाला कोई व्यक्ति होता है |
भारत का पुरातन राजेंद्र प्रसाद सारांश
विदेशों के साथ नालंदा विश्वविद्यालय का जो संबंध जुड़ा हुआ था | उसका एक स्मारक तार पत्र था| नालंदा में खुदाई से मिला इस से ज्ञात होता है कि सुवर्ण दीप सुमात्रा के शासक शैलेंद्र सम्राट भी बाल पुत्र के मदद के सम्राट है देव पाल दिल के पास अपना दूत भेजकर या प्रार्थना की कि उसकी ओर से 5 गांव का दाम नालंदा विश्वविद्यालय से किया जाता | तार पत्र के अनुसार नालंदा में गुणों के आकृष्ट होकर मायावी युद्ध के सम्राट बाल पुत्र के भगवान पुत्र के प्रति भक्ति प्रदर्शन करते हुए नालंदा में एक बड़े बिहार का निर्माण करवाया था | 5 नाम गांव की आय प्रतिज्ञा परमिता आदि का पूजन चतुर्दशी स्थान अंतरराष्ट्रीय आज सुजुकी के बीच भोजन चिकित्सा तैनात आदि काव्य धार्मिक ग्रंथों की प्रतिलिपि एवं बिहार का टूट-फूट की मरम्मत आदि के लिए भी के लिए भी खर्च की जाती थी तो उन अलंदा के नाम से ही प्रसिद्ध था |, और यह तो संजोग से बचा हुआ एक उदाहरण है कि जो विदेश में फैली हुई नालंदा की छापेमारी सामने रखता है लेकिन नालंदा महाविहार भूखंड में थी | हमारे दैनिक जीवन में सफलता प्राप्त करते थे | मूल रूप से पांच विषयों की शिक्षा वहां से अनिवार्य थी | विद्या व्याकरण याद से भाषा का समय ज्ञान प्राप्त हो सके विद्या हेतु तर्कशास्त्र जिसे विद्यार्थी अपनी बुद्धि की कटौती पर प्रत्येक बात को परख सकता चिकित्सा विद्या जी से छात्र स्वस्थ रह सकता है और दूसरे व्यक्ति को विश्वास रखता है रखने का प्रयास करता है उस विद्या एवं 11 शील को सीखना वहां अनिवार था जिसे द्वारा छात्रों को व्यवहारिक और आर्थिक जीवन प्राप्त हो गया था| इसके अनुसार लोग धर्म और दर्शन करते नालंदा जिला में आते हैं | नालंदा में विद्वानों में जाकर ज्ञान का प्रसार किया जाता | और सबसे पहले तो तिब्बत के अतरोग क्षण गमपो को | ( 630 ईसवी ) अपने देश में भारतीय लिपि और ज्ञान का प्रचार करने के लिए सम्राट है यहां विद्वानों ने स्तंभ के नालंदा में भेजा जिसने आचार्य देव सिंह के चरणों में बैठकर बौद्ध का ब्राह्मण साहित्य की शिक्षा प्राप्त की थी \ इसके बाद आठवीं शताब्दी में नालंदा के कुलपति आचार्य शांति रचित की बत्ती स्मार्ट का आमंत्रण उस देश में हुआ था | नालंदा के तंत्र विद्या के प्रमुख आचार्य कमल सिंह तिब्बत गए थे | नालंदा के विद्वान तिब्बत भास्कर बौद्ध ग्रंथों और संस्कृत में अनुवाद किया था | और इस प्रकार उन्होंने तिब्बत देश को एक साहित्य प्रदान किया और फिर से सेना सेना वहां के निवासियों को बौद्ध धर्म के दीक्षित किया | और नालंदा के आचार्य शांति रचित ने ही सबसे पहले 749 इसवी तिब्बत के बौद्ध धर्म बिहार की स्थापना की थी | इन विद्वानों आचार पद संभव ( 749 ईस्वी में ) और दीपंकर श्रीज्ञान अतीश ( 980) में नामउल्लेखनीय है
Que. डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का जन्म कब और कहां हुआ था ?
Ans . 3 दिसंबर 18 44 ईसवी को सारण जिला बिहार के जीरादेई गांव में हुआ था |
Que . उनके पिता का क्या नाम था ?
Ans . महादेव सहायक फारसी
Que . डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद किस किस चीज को शौकीन थे ?
Ans , वह दो चीज की शौकीन थे पहला पहलवानी और घुड़सवारी ही शौकीन थे |
Que . वह कोलकाता में वकील में शामिल कब हुए थे ?
Ans , 1916 ईस्वी में |
Que . डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का मृत्यु कब हुआ था ?
Ans . 28 फरवरी 1963 ईस्वी को |
Que . डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को सबसे पहले नामांकन की शिक्षा किस स्कूल में हुई थी ?
Ans , छपरा के हाई स्कूल में हुआ था |