हंसते हुए मेरा अकेलापन मलयज || Hanste hue mera akelapan objective

Last updated on February 28th, 2024 at 01:14 pm

हंसते हुए मेरा अकेलापन  सारांश मलयज  || Hanste hue mera akelapan objective 

     हंसते हुए मेरा अकेलापन Objective 

मलयज का जन्म  :1935 ईस्वी में | 

 निधन  :  26 अप्रैल 1982 ईस्वी | 

मलयज  का जन्म स्थान   :   महुई ,आजमगढ़ उत्तर प्रदेश में | 

 मूलनाम  :  भरत जी श्रीवास्तव  |  

माता- पिता  प्रभावती एवं त्रिलोक नाथ वर्मा | 

शिक्षा   :  एम ,ए , (  अंग्रेजी )  इलाहाबाद विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश | 

 विशेष  :  छात्र जीवन में  छहरोग के ग्रसित | ऑपरेशन में एक फेफड़ा काटकर निकलना पड़ा |  शेष जीवन में दुर्बल स्वास्थ्य और बार-बार स्वास्थ्य के कारण दवाओं के सहारे जीते रहे | 

 स्वभाव   :  अंतर्मुखी,  प्राय : अवसाद ग्रस्त  किंतु कठिन जीजीविशाधर्मी ,गंभीर, एकांतप्रिय ,और मितभाषी | 

  विशिष्ट संपर्क  :  शमशेर बहादुर सिंह विजयदेव नारायण साही , परीमल  ( संस्था इलाहाबाद )  | 

 वृत्ति   :  कुछ दिनों तक के 0 पी0  कॉलेज इलाहाबाद में अध्यापक रहे | 1964  मैं कृषि मंत्रालय भारत सरकार की अंग्रेजी पत्रिकाओं के संपादन विभाग में नौकरी की | 

 विशेष अभिरुचि  :  ड्राइंग और  स्केचिंग | संगीत कला प्रदर्शनी एवं सिनेमा में गहरी रुचि थी | 

  संपादन  :  लहर कविता का विशेषांक ( 1960 )  शमशेर पुस्तक का सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के साथ संपादन किए | 

 कृतियां  :  कविता :  जख्म पर धूल ( 1971)  अपने होने की अप्रकाशित  करता हुआ  (1980 )  आलोचना :  कविता के साक्षात्कार (1979 ) संवाद और  एकलाप (1984 )  रामचंद्र शुल्क  ( 1987 )  |  सर्जनात्मक   हंसते हुए मेरा अकेलापन (1982)  डायरी : 3   खंड, संपादक :  डॉ नामवर सिंह |

  हंसते हुए मेरा अकेलापन मलयज सारांश 

हंसते हुए मेरा अकेलापन मलयज सन 1960 के आसपास नई कविता आंदोलन के अंतिम दौर में मलयज का उदय एक कवि के रूप में हुआ था |  आराम माता रचना सहेली और संवेदना के तल पर वेले कविता के प्रवर्तक रूपों में प्रभाव में थे ; किंतु आगे के सामाजिक- राजनीतिक विकास के साथ आए साहित्य यथार्थ संबंधी परिवर्तनों के बीच एक ओर से वे अपनी कविता के रचना- दर- रचना अनेक महत्वपूर्ण बदलाव से गुजरता रहा तो दूसरी ओर उनकी आलोचना का विकास हुआ  जो हिंदी में सातवें- आठवें दशक की उपलब्धि कही जा सकती है |  कवि के रूप में सूजन प्रक्रिया के दौरान वे जो कुछ अनुभव करते थे उसे निरीक्षण-  पर्यवेक्षण  के द्वारा आलोचना में रूपांतरित करते थे |  इस प्रकार मुक्तिबोध की तरह उनकी कविता और आलोचना एक ही समग्र सर्जन- प्रक्रिया की  विविध  अभीव्यक्तियों के रूप में एक दूसरे के साथिया परिणाम की तरह विकसित हुई |  मलयज के लिए कविता और स्वभाव:  आलोचना भी, व्यक्ति के भीतर और बाहर से परंपरागत स्रोतों की  अवधारणाओं  एक और अखंड करती हुई  ओंकार  रूपाकार ग्रहण करती है |  एक कवि के रूप में जहां वे अपनी काव्यनुभूति के उन रासायनिक तत्वों और प्रक्रियाओं के प्रति सचेत और जागरूक रहते हैं जिसमें परिवेश और ब्राह्म   यथार्थ  है एक आलोचक के रूप में संवेदनशीलता और  मानवी लगाओ के साथ रचना के आंतरिक के संसार में उतर कर सर्जनात्मक स्रोतों संश्लेषण और प्रक्रियाओं  हृदय सहानुभूति एवं सजन  बौद्धिकता  के साथ  श्रुति जमाई रखते थे |  सहज की उनकी आलोचना में कविता का समतुल्य सुख प्राप्त होता है |  अपने जीवन के अंतिम तक- 1 वर्षों में  कवि – आलोचक अशोक बाजपेई और उनका संपादन में निकल ले वाली पत्रिका पूर्व ग्रह से जुड़कर उन्होंने हिंदी आलोचना में  आना पड़ता है | 

 14 जुलाई 56  सुबह से ही पेट काटे जा रहे हैं |  मिलिट्री की छावनी के लिए इंधन- पूरे सीजन और आगे आने वाला जाने के लिए भी रखना पड़ता था | पेड़े को कि पूरे अरे तू नहीं लेकिन चारों ओर से सरसब्ज पेड़ों ने मानो उदारता वास अपने में से थोड़ी- थोड़ी हरित आभा प्रदान करें उन्हें भी अपने निरोग उदास और  उदास और विशाल और   प्रवाहन निरोप में उस गिरोह की आत्मा एक है |  क्योंकि उस आत्मा का  नाद एक है….. वे जब बोलते हैं |  तब एक भाषा में गाते हैं, सर एक भाषा में रोते हैं , तब भी एक  भाषा में……

              और खून सफेद  घना और खूब सफेद-  त्रुटि  के विस्तार  बीच ही से कच्चे रस्सी की तरह काट दिया जाता है | ……….   किंतु ए धनिया  ? 

18 जून 57 एक खेत की पेड़ पर बैठी कौवा की कतार देख कर :    ….. उम्र की फसल पककर तैयार- सपनों का सुहाना रंग अब जल्द  पड़  चला है |   एक मधुर आशापुरन  फल  जिसने अनुभव की तिहाई से छिलके उतार कर फेंक देता है | और विगत के मूल्य जिस पर बचपना कभी समझाता था, कितने बेमानी | 

इधर पता नहीं कितने सालों से मेरे जीवन का केंद्रीय अनुभव लगता है कि डर है मैं भीतर बेहतर डरा हुआ व्यक्ति खाता हूं | Hanste hue mera akelapan 

हंसते हुए मेरा अकेलापन प्रशन उत्तर 

1.  डायरी क्या है ? 

उत्तर : डायरी क्या है लेखक के अनुसार डायरी व्यक्ति लेखन के द्वारा लिखा गया व्यक्तिगत सोच और  अनुभव भावनाओं को लिखित रूप से अंकित करके बनाया गया एक संग्रह है डायरी गद्य साहित्य की प्रमुख विद्या है इसमें लेखक आत्मसाक्षात्कार करता है वह अपने संप्रेषण की स्थिति में होता है विश्व में हुए महान व्यक्ति डायरी लेखन का कार्य करते थे और उनके अनुभवों से उनके निधन के बाद भी कई लोगों को प्रेरणा मिली थी | 

2. डायरी कितने प्रकार का होता है ? 

उत्तर : डायरी मुख्यतःचार प्रकार का होता है 

1.व्यक्तिगत डायरी  2. काल्पनिक डायरी  3. वास्तविक डायरी  4. साहितियक डायरी 

3. डायरी का लिखा जाना क्यों मुश्किल है ? 

उत्तर : डायरी का लिखा जाना मुश्किल है क्योंकि मेरे भीतर इन दिन कितने शब्द भरे पड़े हैं ,  या अर्थ ?  जो लिखता हूं  अगर उसने शब्द अधिक  है तो अर्थ  कम या अगर अर्थ ज्यादा है तो उसके हिसाब से शब्द कम पड़ रहे हैं डायरी में 2 शब्दों और अर्थों के बीच तटस्था कम रहती है इसी से उसका लिखा जाना मुमकिन नहीं यानी मुश्किल है?  लिखना मात्र एक तटस्था की मांग रखता है डायरी लिखना भी कभी-कभी मैंने कविता के मूड में डायरी लिखिए आज के बीच दूरी का एहसास किसी मां के अनुसार निर्धारित नहीं होता शब्द अर्थ में और अर्थ में  धन ते चले जाते हैं एक दूसरे को पकड़ते एक दूसरे को छोड़ते हुए वह अवकाश होता है और उसके रचना बिजली की रूकती है सुरक्षा डायरी में भी नहीं  वहां सिर्फ लाया है पलायन है |अंधेरे में सिर्फ छिपा जा सकता है एक पल पल की धुकधुकी के साथ सुरक्षा चुनौती को झेलने में ही है लड़ने में इतने में और घटने में बचाने में नहीं अपने को सेने में नहीं इसीलिए डायरी का लिखा जाना मुश्किल है | 

4. हंसते हुए मेरा अकेलापन के लेखक कौन है  ? 

उत्तर : हंसते हुए मेरा अकेलापनके लेखक मलयज है | 

5. मलयज का जन्म कब हुआ था ? 

उत्तर :मलयज का जन्म 1935 ईस्वी में हुआ | 

Hanste hue mera akelapan important objective : मलयज की कविता और आलोचना से कम महत्वपूर्ण नहीं है | उनकी डायरिया |  एक प्रतिभाशाली संवेदनशील कवि आलोचक के आत्म निर्माण का वह प्रमाणित अध्यक्ष हैं उन्हें पढ़कर यह जानना और अनुभव कर पाना संभव होता है कि साहित्य कर्म नीरज शब्द व्यापार नहीं है साहित्य लिखने और साहित्यकार बनने के लिए लेखन से अरे जीवन में भी कितना सजग सावधान और स्वाधीन होना जरूरी है एक व्यक्ति को कितना खुला ईमानदारी और विचारशील होना चाहिए व्यक्ति के क्या दायित्व है और अपने दायित्वों के प्रति कैसा लगा कैसी क्षमता होनी चाहिए प्रस्तुत है बल्कि डायरी के कुछ छोटे से इसमें लगभग डेढ़ हजार पृष्ठों में फैली हुई मलेरिया की एक छोटी सी झलक मिली है |

Hanste hue mera akelapan \\ हंसते हुए मेरा अकेलापन मलयज 

My name is Uttam Kumar, I come from Bihar (India), I have graduated from Magadh University, Bodh Gaya. Further studies are ongoing. I am the owner of Bsestudy.com Content creator with 5 years of experience in digital media. We started our career with digital media and on the basis of hard work, we have created a special identity for ourselves in this industry. (I have been active for 5 years, experience from electronic to digital media, keen eye on political news with eagerness to learn) BSE Study keeps you at the forefront, I try to provide good content and latest updates to my readers.You can contact me directly at ramkumar6204164@gmail.com

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