Last updated on February 28th, 2024 at 01:07 pm
यूरोप में राष्ट्रवाद उदय और विकास , Europe me rastravaad ka uday
यूरोप में राष्ट्रवाद उदय
यूरोप में राष्ट्रवाद ; आधुनिक राजनीति का देन है | और यह राजनीतिक चेतना का प्रतिफल है | इसके द्वारा क्षेत्र विशेष अथवा सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश में निवास करने वालों में एकता की भावना का विकास होता है | राष्ट्रवाद की अवधारणा पुनर्जागरण काल में ही जन्म ले चुकी थी , किंतु 18वीं और 19वीं शताब्दी में इसका विकास हुआ | और इसका आरंभ फ्रांस की 1789 की महान क्रांति से माना जा सकता है | क्रांति के बाद कुछ समय के लिए पुनः बलवती हो गई हम फल स्वरुप , बीसवीं शताब्दी में यूरोप में क्रांतियों का दौर आरंभ हुआ | इसके साथ ही राष्ट्रवादी धारणा का विकास हुआ | जिसने जर्मनी और इटली का एकीकरण संभव कर दिया | पोलैंड , हंगरी और यूनान ( ग्रीस ) भी राष्ट्रवाद की लहर में समाहित हो गया |
फ्रांस में राष्ट्रवाद
फ्रांस में राष्ट्रवाद: यूरोप में राष्ट्रवाद की स्पष्ट रूप से अभिव्यक्ति सबसे पहले फ्रांस में हुई | क्रांति के पहले वहां दुर्गों राजवंश का निरंकुश शासन रहता था | क्रांति द्वारा तानाशाही को समाप्त कर जनता ने सत्ता अपने हाथों में ले ली | अब प्रभुता राजा के हाथों में नहीं रही, बल्कि जनता के हाथ में चली गई, पित्र भूमि और नागरिक जैसे शब्दों द्वारा फ्रांसीसीयों में एक सामूहिक भावना और पहचान बढ़ाने का प्रयास किया गया | इसमें दो बातों पर विशेष बल दिया गया है -(1) संप्रभुता राज्य ( राष्ट्र ) में निहित है , व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह में नहीं : ( 2) नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा करना तथा उन्हें सम्मान अधिकार देना राज्य का कर्तव्य है | लेकिन कन्वेंशन ने स्वतंत्र को समाप्त कर राजा रानी की मौत की सजा दी | क्रांति के दौरान प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार कर एक समान कानून लागू किया गया | नापतोल की एक पद्धति अपनाई गई क्षेत्रीय भाषा के स्थान पर फ्रेंच भाषा को प्रोत्साहित किया गया यह राष्ट्रीय भाषा बन गई |
राष्ट्रवाद के प्रसार में नेपोलियन का योगदान
राष्ट्रवाद के प्रसार में नेपोलियन का योगदान : नेपोलियन बोनापार्ट ने 1799 में डायरेक्टरी का शासन समाप्त कर प्रथम काउंसिल के रूप में फ्रांस में सत्ता पर अधिकार कर लिया था | 1804 में व फ्रांस का सम्राट भी बन गया था | प्रथम काउंसिल बनने की पूर्व ही उसे ऑस्ट्रिया को पराजित कर इटली के एक बड़े भाग पर अधिकार कर लिया था | सम्राट के रूप में उसने ब्रिटेन के अतिरिक्त इमो पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था | इसके साथ ही क्रांति का संदेश नेपोलियन के प्रभाव वाले यूरोपीय क्षेत्र में पड़ा | आश्रित राज्यों में भी नेपोलियन संहिता प्रशासन और अर्थव्यवस्था लागू की गई | 1804 में नेपोलियन संहिता द्वारा जन्मजात विशेषाधिकार समाप्त कर दिया गया| सम्मान शुल्क सम्मान माप तोल कि प्राणी और एक मुद्रा के प्रचलन से व्यापार वाणिज्य और उद्योग धंधों का विकास हुआ इससे फ्रॉम अधिकृत राज्यों में एक नई आशा जगी वहां भी तानाशाही के विरुद्ध आवाज उठने लगी |
राष्ट्रवाद के विकास में सहायक तत्व
राष्ट्रवाद के विकास में सहायक तत्व : 18 वीं शताब्दी में यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में अनेक तत्वों का योगदान | इस समय कुलीन वर्ग सामाजिक और राजनीतिक रूप से अत्यंत प्रभावशाली था | जमीन का अधिकांश भाग इनके नियंत्रण में था जिस पर यह छोटे किसानों काश्तकारों और दूतावासों से खेती करवाते थे | और इनके पास बड़ी-बड़ी जागी रे दी थी | लेकिन कुलीन वर्ग का प्रभाव बहुत अधिक था | इनकी विशिष्ट जीवन शैली थी जो क्षेत्र अतिथि यह फ्रेंच भाषा बोलते थे | वैवाहिक संबंध हो द्वारा कुलीन परिवार एक दूसरे से जुड़े हुए रहते थे |
{ क्रांतियों का दौर ( 1830- 1848 ) }
क्रांतियों का दौर : क्रांतियों का दौर 1830 तक यूरोप में उदारवाद राष्ट्रवाद और रूढ़िवाद प्रतिक्रिया बाद में संघर्ष अनिवार्य हो गया था | जैसे-जैसे प्रतिक्रियावादी अपना प्रभाव बढ़ाते गए वैसे वैसे शताब्दी भी इनका विरोध करते उतारू हो गए | फलतः 1830-1848 के मध्य ने यूरोपीय राष्ट्रों में राष्ट्रवादी क्रांतियां हुई | इनका उद्देश्य पुरातन व्यवस्था को समाप्त तर नई व्यवस्था की स्थापना करना चाहते थे |
1848 की क्रांतियां
1848 की क्रांतियां : 1830 के बाद 1848 में पुण:यूरोप के अनेक राष्ट्रों में क्रांतियां हुई | 1830 की क्रांति यों ने प्रतिक्रियावादी तत्व को दुर्बल तो कर दिया था किंतु उनका प्रभाव पूर्णरूपेण समाप्त नहीं हो सका था | 1830 के बाद यूरोप में महत्वपूर्ण सामाजिक आर्थिक परिवर्तन हुए शासन पर मध्यम वर्ग का प्रभाव बढ़ा , जनसंख्या में वृद्धि पुणे से बेरोजगारी बढ़ गई | कीमती भी बढ़ गई | इससे गरीब वर्ग बुरी तरह प्रभावित हुआ | इतिहासकार और बुद्धिजीवी राष्ट्रवाद के सिद्धांत का अनवरत प्रसार कर रहे थे | परंतु उग्रवाद में नहीं | राम के ला मरती इटली के मिनी और हंगरी के पोषक जर्मनी में दहलमान जैसे लेखकों एवं चिंतकों ने राष्ट्रीय आंदोलनों के लिए वातावरण तैयार किया | 1846 क्रांतिकारी आंदोलन गति दी |
जर्मनी का एकीकरण
जर्मनी का एकीकरण : शताब्दी के पूर्वा बाद मैं इटली के साथ-साथ जर्मनी का एकीकरण हुआ जर्मनी में इटली का एकीकरण हुआ | 18 70 के नारदीक टि्वटन प्रजातियों का देश जर्मनी अनेक छोटे-बड़े राज्यों, रजवाड़ों में विभक्त किया था| यह सही मायने में एक राष्ट्र नहीं , बल्कि जर्मन भाषी राज्यों का समूह था | इसमें 300 राज्य और प्रशासनिक इकाइयां थी| मोटे तौर पर जर्मनी तीन भागों में विभाजित किया गया था| उत्तरी मध्य और दक्षिणी| संसद में 300 राज्यों के प्रतिनिधि भाग लेते थे परंतु इन में राष्ट्रवाद की भावना नहीं थी जर्मन राज्यों पर फ्रांसीसी सभ्यता संस्कृति का गहरा प्रभाव हुआ था |
एकीकरण में बिस्मार्क का योगदान
एकीकरण में बिस्मार्क का योगदान : फ्रेडरिक विलियम चतुर्थी की मृत्यु के बाद प्रसाद का राजा विलियम प्रथम बना | यह राष्ट्रवादी था तथा प्रसाद के नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण करना चाहता था | विलियम जानता था ऑस्ट्रिया और सुपराजित किए बिना जर्मनी का एकीकरण संभव नहीं है | अतः प्रशा वह सैनिक रूप से सख्त करने का प्रयास किया| उसकी इस नीति का संसद में विरोध हुआ और राजनीतिक गतिरोध उत्पन्न हो गया | इसे दूर करने के लिए उसने 1862 में auto1 विसमार का अपना चांसलर प्रधानमंत्री नियुक्त किया | बिस्मार्क का जन्म 1812 में ब्रेंडनवर्ग में हुआ था | वह प्रख्यात राष्ट्रवादी और कूटनीतिज्ञ थे जर्मनी के एकीकरण के लिए वह किसी भी कदम को अनुचित नहीं मानते थे उन्होंने जर्मन राष्ट्र वादियों के सभी समूहों से चाहे हुए उत्तर वादी राष्ट्रवादी हो अथवा कट्टरवादी राष्ट्रवादी संपर्क स्थापित कर उन्हें अपना प्रभाव में लाने का प्रयास किया 1830 के ऑस्ट्रो प्रशासन जी का भी विरोध उन्होंने किया 1848 के फ्रैंकफर्ट संसद में भाग लिया बाद में वह और पेरिस में बनाए गए 1808 में वसा के प्रधानमंत्री बने का मानना था कि जर्मनी की समस्या का समाधान हाथों से नहीं आदर्शवाद से नहीं बहुमत के निर्णय से नहीं वर्षा नेतृत्व में रक्त और लौह की नीति से होगा सबसे पहले बिस्मार्क आर्थिक सुधार के द्वारा की स्थिति मजबूत किया इससे सैनिक शक्ति सुदृढ़ हुई प्रसारण के लिए युद्ध किए |
( 1) डेनमार्क युद्ध: 1864 में सेल्स बिग और युद्ध हुआ | इन दोनों क्षेत्रों में जर्मन निवास करते थे |
( 2) प्रशा और ऑस्ट्रिया युद्ध : 1865 की गैसस्टीन संधि द्वारा स्टील ऑस्ट्रिया का आधिपत्य स्वीकार किया गया था परंतु यह संधि अस्थाई थी होल्सटीन प्रसाद से घिरा हुआ था और ऑस्ट्रिया से दूर होने के कारण ऑस्ट्रेलिया के प्रभावशाली नियंत्रण में नहीं था इसलिए बिस्मार्क ने इसे फंसा में मिलाने की योजना बनाई ऑस्ट्रिया के साथ युद्ध करने के पूर्व उसने स्वरूप और इंग्लैंड को अपने पक्ष में मिला लिया अतः वे युद्ध में तटस्थ रहे 1866 में ऑस्ट्रिया प्रसाद युद्ध अथवा सेडोवा का युद्ध हुआ जिसने ऑस्ट्रिया पराजित हुआ |
(3) फ्रांस के साथ युद्ध : जर्मनी की बढ़ती शक्ति से फ्रांस भयाक्रांत दक्षिणी राज्यों को प्रसाद के साथ मिलने नहीं देना चाहता था बिस्मार्क जानता था कि इन राज्यों में राष्ट्रवादी भावना भान पर थी और युद्ध के भय से यह राजीव प्रसाद में मिल जाएंगे |
यूरोप में राष्ट्रवाद उदय और विकास , Europe me rastravaad ka uday