अर्धनारीश्वर रामधारी सिंह दिनकर , Ardhnarishwar Ramdhari Singh Dinkar :Ramdhari Singh Dinkar important objective

Last updated on February 28th, 2024 at 12:53 pm

रामधारी सिंह दिनकर वस्तुनिष्ठ प्रशन और सारांश

अर्धनारीश्वर रामधारी सिंह दिनकर  , Ardhnarishwar Ramdhari Singh Dinkar  

अर्धनारीश्वर रामधारी सिंह दिनकर 

रामधारी सिंह दिनकर का जन्म  : 23 सितंबर 1908 को हुआ |

 रामधारी सिंह दिनकर का निधन  : 24 अप्रैल 1974 को हुआ |

 रामधारी सिंह दिनकर का जन्म स्थान   : सिमरिया बेगूसराय के बिहार में था | 

रामधारी सिंह दिनकर के पिता का रवि सिंह एवं माता का नाम मनरूप देवी था | 

रामधारी सिंह दिनकर शिक्षा :  प्रारंभिक शिक्षा गांव और उसके आसपास |  928 में मोकामा घाट रेलवे हाई स्कूल से मैट्रिक ,  1932 में पटना कॉलेज से बीए ऑनर्स  ( इतिहास ) 

वृत्ति :  प्रधानाध्यापक  एच  ई  स्कूल बरबीघा :  सब  रजिस्ट्रार सब डायरेक्टर  जनसंपर्क विभाग बिहार विद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर रहे | भागलपुर विश्वविद्यालय में उपकुलपति |  हिंदी सलाहकार के रूप में भी कार्य किए थे | 

 साहित्य अभिरुचि   : 1925 में भारत जीवन में अनेक रचनाएं प्रकाशित  | 21बस की अवधि में पहली कविता पुस्तक प्रणभंग प्रकाशित किए | 

 कृतियां  :  प्रमुख काव्य कृतियां :  (1929)  रेणुका (1935)  अविष्कार (1938) रसवंती (1940) गुरुक्षेत्र (1946) रशिम रथी (1952)  नील कुसुम (1954)  उर्वशी (1961)  परशुराम की प्रतीक्षा (1963)  गुमला का और पवित्र (1964)  हारे को हरिनाम (1970)  आदि | 

 प्रमुख गद्य कृतियां :  मिट्टी की ओर ( 1946)  अर्धनारीश्वर (1952)  संस्कृति के चार अध्याय (1956) काबे की भूमिका (1958)  व्हाट पीपल (1961)  शुद्ध कविता की खोज (1966)  दिनकर की डायरी (1973)  आदि | 

 पुरस्कार एवं सम्मानित  :  संस्कृत के चार अध्याय पर साहित्य अकादमी एवं पूर्व अर्शी पर भारत ज्ञानपीठ के पुरस्कार राज्यसभा के सांसद में |  पदम भूषण एवं कई   अलंककारणों से सम्मानित किया |  राष्ट्र कवि के रूप में स सम्मानित हुए | 

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जितने बड़े कवि थे उतने ही समर्थ गद्दार  भी थे | उनके  गद्य में भी उनकी कविता के गुण – ओर पुरुष  प्रभावपूर्ण नवा गीत माता और रूपक धर्मिता आदि उसकी रह जाता और प्रवाह के साथ मुखरित होते हैं | 

 उनकी कविता और गज दोनों में उनकी व्यक्तित्व की एक ऐसी गहरी छाप है |  उसकी भाषा कुछ भी छुपाती नहीं सब कुछ उजागर कर देती है |  अब यह पाठ श्रोताओं से ग्रहण शीलता पर निर्भर है कि वह कितनी जागरूकता और चौकन्ना है |  उनकी पराक्रमी वाणी में सन्नाटे और मौन के सक्रिय निषेध का बल भी है |  गोयल व उठ खड़ी हुई वाणी हो |  

  उनकी कविता और गज दोनों में उनकी व्यक्तित्व की एक ऐसी गहरी छाप है |  उसकी भाषा कुछ भी छुपाती नहीं सब कुछ उजागर कर देती है |  अब यह पाठ श्रोताओं से ग्रहण शीलता पर निर्भर है कि वह कितनी जागरूकता और चौकन्ना है |  उनकी पराक्रमी वाणी में सन्नाटे और मौन के सक्रिय निषेध का बल भी है |  गोयल व उठ खड़ी हुई वाणी हो |

  दिनकर छायावादोत्तर युग के प्रमुख कवि हैं|   भारतेंदु युग से परिवहन मान राष्ट्रीय भावना के एक महत्वपूर्ण आधुनिक कवि है | कविता लिखने की शुरुआत उन्होंने इस के दशक में ही कर दी थी किंतु अपनी संवेदना और भाव होते हुए चौथे दशक के प्रमुख कवि के रूप में ही पहचाने गए|  उन्होंने प्रबंध,   मुक्तक ,  गीत – प्रगीत  काव्यनाटक   इत्यादि अनेक कवियों में सफलतापूर्वक उत्कृष्ट रचनाएं प्रस्तुत की है | 

अर्धनारीश्वर शंकर और पार्वती  कालीपत रूप है ,  जिसका आधा अंग पुरुष और आधा अंग नारी का होता है|  एक ही मूर्ति की दो आंखें ,  1 मई और दूसरी विकराल :  एक ही मूर्ति की दो भुजाएं ,  एक त्रिशूल उठाएं और दूसरी की पहुंची पर चूड़ियां और उंगलियां अलका तक से लाल एवं एक ही मूर्ति की दो  पाव एक जरीब और साड़ी से औरत और दूसरा भंवर से ढका हुआ | 

 एक हाथ में डमरू,  एक में वीना परम उदार | 

एक  नयन में  गरल एक में संजीवन की धार | 

 जटा जूट में लहर पुणे की , शीतलता –  सुख –  कारी |

 बालचंद्र दीपक त्रिपुंड पर,   बलिहारी,  बलिहारी | 

  रामधारी सिंह दिनकर सारांश 

किंतु कवि की यह कल्पना झूठी है|  यदि आदि मानव और आदि मानव आदि मौजूद होते तो ऐसी कल्पना से सबसे अधिक आश्चर्य  उन्हें ही होता |  और  वे ,  कदाचित की’  आपस में धूप और चांदनी का बंटवारा हमने नहीं किया था |  हम तो साथ-साथ जन्मे थे तथा भूख और चांदनी में ,  वर्षा और अपने साथ ही घूमते हुए थे ;  नर और मादा पशु में वित्तीय और पक्षियों में भी |  चिंटू पशु और पक्षियों ने अपनी माताओं पर आर्थिक प्रवक्ता नहीं ला दी लेकिन मनुष्य की मादा पर यह प्रदीप था आपसे आंख लड़ गई |  इस प्रधानता के कारण नारी अपने अस्तित्व की अधिकारी नहीं रहे उसके सुख और दुख प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठा, यहां तक कि जीवन और मरण पुरुष की मर्जी पर बिकने लगे उसका सारा मूल्य इस बात पर जा तारा कि पुरुषों को उसकी कोई आवश्यकता है या नहीं इसी से नारी की पद मर्यादा प्रगति मार के प्रचार से उठती और निवृत्ति मार्ग के प्रचार से  गिरती है जो प्रवृत्ति मार्ग हुए उन्होंने नारी को गले से लगाया क्योंकि जीवन से हुए आनंद चाहते थे और नारी आनंद की थी | मेरा अनुमान है कि ऐसी परिस्थितियों को अभी भी बुरा नहीं मानती |  नदियों की आदत और अभ्यास से उनका अंत मरण भी यही कहता है कि नारी जीवन की सार्थकता पुरुष को रिझा कर रखने में है |  यह सुनना उन्हें बहुत अच्छा लगता है कि नारी स्वपन है ,  नारी सुगंध है ,  नारी पुरुष की वाह पर झूलती हुई जूही की माला है ,  नारी नर के व्हिच स्थल पर मंदार का हार है |  किंतु यही वह अपराध है जिसे अधिक से अधिक उड़ेल कर हम नव युग के पुरुष नारियों के भीतर उठने वाले स्वतंत्र के अंगों को बंद रखना चाहते |  नारी और नर एक ही द्रव की थैली दो प्रतिमाएं हैं |  अरब में दोनों बहुत कुछ सम्मान थे |  आज भी प्रत्येक नारी में कहीं ना कहीं कोई एक्शन नर और प्रत्येक घर में कहीं ना कहीं एक की नारी छिपी हुई है |  किंतु सदियों से नारी अपने भीतर के और अपने भीतर की नारी को दबाता आ रहा है|  परिणाम यह है कि आज सारा जमाना ही मर्दाना मर्द और वर्तनी औरत का जमाना हो उठा है |  स्थिति से बाहर निकलने का रास्ता नहीं है जिसे रोमांटिक काजू और चिंतकों ने बनाया है,  बल्कि वह है जिसकी ओर संकेत गांधी और मार्च करते निवृत्ति मार्ग यू की तरह नारी से नर भाग है,  बल्कि वह है जिसकी ओर संकेत गांधी और माफ करते हैं , नारियों की  अवहेलना हमारे अपने काल तक भी पहुंची हैं | 

इन सब से भिन्न रविंद्र नाथ प्रसाद और प्रेमचंद्र जैसे कवियों और रोमांटिक चिंतकों ने नारी का जो रूप प्रकट हुआ वह भी उसका अर्धनारीश्वर रूप नहीं है प्रेमचंद्र ने कहा है कि पुरुष जब नारी के गुण लेता है तब वह देवता बन जाता है किंतु ;  नारी जब नर के गुण सकती है तब हुआ राक्षसी हो जाती है | इसी प्रकार प्रसाद जी की इला के विषय में यदि यह कहा जाए कि यह वह नारी है जिसने पुरुषों के भूल सीखे हैं तो निष्कर्ष यही लिख लेगा कि प्रसाद जीवनी नारी कुरुक्षेत्र से अलग रखना चाहते थे और रविंद्र नाथ का मत तो और भी अस्पष्ट है वह कहते हैं | नारी यदि नारी है 

Ramdhari Singh Dinkar important objective 

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