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उसने कहा था चंद्रधर शर्मा गुलेरी ,Usne Kaha Tha Chandradhar Sharma guleri
पाठ- 2 उसने कहा था ( चंद्रधर शर्मा गुलेरी ) Objective
चंद्रधर शर्मा गुलेरी का जन्म : 7 जुल 1883 ईसवी
मृत्यु (निधन) : 12 सितंबर1922 ईसवी
मूल निवास ( स्थान ) : गुलेरी नामक ग्राम जिला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश में |
चंद्रधर शर्मा गुलेरी का शिक्षा ; बचपन में संस्कृत की शिक्षा 1899 इलाहाबाद तथा कोलकाता विश्वविद्यालय में एंट्रेंस मैट्रिक 1901 मैं कोलकाता विश्वविद्यालय से इंटरमीडिएट 1903 मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी ए |
वृत्ति : 1904 मैं जयपुर दरबार की ओर से खेतड़ी के नाबालिग राजा जय सिंह के अभिभावक बनकर मेयो कॉलेज अजमेर में आ गए | जयपुर भवन छात्रावास के अधीक्षक | 1916 में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष बने | अंतिम दिन मदन मोहन मालवीय के निमंत्रण बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में प्राचार्य विभाग के कार्यवाहक प्राचार्य तथा महिंद्र चंद्र नंदी पीठ के प्रोफ़ेसर बने |
संपादक : समालोचक काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका का संपादन किया |
चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी की रचनाएं
कहानियां सुखमय जीवन (1911 ) बुध का कांटा ( 1911 ) और उसने कहा था ( 1915 ) | प्रचार विद्या इतिहास पुरातत्व भाषा विज्ञान और समसामयिक विषयों पर निबंध लेखन लिखें | कछुआ धर्म मारे सी मोहि उठाव पुराने हिंदी भारतवर्ष सिंगल दीवाना रे आदि प्रमुख निबंध | इनके अतिरिक्त वादों की बात खोज की खाज क्रियाशील हिंदी वैदिक भाषा मैं प्राकृत पन आदि टिप्पणियां भी प्रकाशित किए | अंग्रेजी में ए पोयम बाय बॉस एंट्री ऑन बस बादशाह दी लिटरेरी क्रिटिसिजम आदि निबंध लिखे | देश प्रेम को लेकर कुछ कविताएं भी लिखि |
चंद्रधर शर्मा गुलेरी सारांश
Usne Kaha Tha chandradhar Sharma guleri , चंद्रधर शर्मा गुलेरी बीसवीं शताब्दी के प्रथम चरण में हिंदी गद्य साहित्य के एक प्रमुख लेखक थे | वह अपने समय में हिंदी संस्कृत अंग्रेजी आदि भाषाओं के प्रखंड विद्वान व्यक्ति थे | प्रकृति अपभ्रंश आदि भाषाओं में भी उनका गहरी गति थी | पुरातत्व इतिहास भाषा शास्त्र आदि विषयों पर उनका ध्यान अपने समय में और कैलाशपति माना जाता था | साहित्य के अतिरिक्त अपनी अभिरुचि के विषयों पर उन्होंने हिंदी में निबंध लेख टिप्पणी या बराबर लिखती रही | वे द्विवेदी युग के एक प्रमुख निबंधकार और बहू मान विद्वान व्यक्ति थे | ग्रेड और विद गध हास परिहास तथा व्यंग परिपूर्ण अपनी कलात्मक भाषा शैली को देखते हुए वे अपने समय में बहुत आगे दिखाई पड़ते हुए गए थे | वस्तुतः अपनी युग के अत्यंत प्रतिभाशाली और समर्थ लेखक में से एक थे | गुलेरी जी ने कुंती कहानियां लिखी और उन्हीं के बल पर कहानीकार के रूप में हिंदी के अमर हो गए थे | उनकी कहानियां विषय वस्तु भाषा शैली और शिल्प एक कारण अपने समय से बहुत आगे की रचनाएं प्रतीत होती रहती है | और हिंदी कहानी के विकास में इनका प्रत्यक्ष और रोज के रूप में प्रभाव पड़ता रहा | संस्कृत का इतना बड़ा पंडित और शास्त्र विद्वान व्यक्ति थे | गंभीर प्रकृति का विद्वान एसे सृजनात्मक भाषा शैली में कल्पना और कहानी को उत्कर्ष बिंदु पर पहुंचाकर ही विराम लेता है कहानी का प्रभाव मन में अंतर रह जाता हैअर्थात के ऐसे संतुलित साधन के साथ आधुनिक तथ्यों वाली थी कहानियां लिखित सकता था | यह सचमुच चमत्कृत कर देने वाला व्यक्ति था | आश्चर्य से भर देने वाले रचना रचना है | एक कहानियां अपनी भाषा शैली में शिल्पा को लेकर आज भी उतनी ही तरोताजा और रचनात्मक और तू श्री की प्रतीत होती है रहती है | कौतुक का अभिप्राय यह नहीं कि इन की विषय वस्तु कम महत्वपूर्ण अथवा अन्य वीर है | सच्चाई इसके विपरीत रहती हैं | इसके विषय वस्तु और कथित अधिक गंभीर महत्वपूर्ण तथा समय से आगे चलता रहा है | यहां बस तू ता कहानी उसने कहा था उनकी अमर रचना है | यह हिंदी कहानी के विकास में मील का पत्थर मानी जाती थी | यह कहानी कालजई रचना की है | प्रसिद्ध फिल्मकार बिमल राय ने इस कहानी पर फिल्म भी बनाई थी | और इनके अनेक नाटक रूपांतर हो चुकी थी | शुद्ध प्रेम की आध्यात्मिक अनुभूति और उनके स्वभाव एक उत्सर्गमय अभी व्यक्तित्व इस कहानी का कथ्य यह है | बहाने अमृतसर के भीड़ भरे बाजार में यह घटना हुई थी | जहां 12 वर्ष का लड़का ( ललन सिंह ) 8 वर्ष की एक लड़की थी तांगे के नीचे आने से बचा जाता है | लड़का लड़की को यह पूछते हुए कहता है कि | तेरी कुड़माई ( मंगनी ) हो गई है ? लड़की जाती थी | एक दिन वह दांत का कर भागने की बजाय जाती है कि हां कल हो गई थी | देखते नहीं कि यह रेशम की फूल वाला सालू ? लहना सिंह हाथ प्रभाव रह जाता है कि | इसके बाद लहना सिंह के भेंट प्रथम विश्व युद्ध के मोर्चे पर होती है | वह याद करता है कि छुट्टी के बाद घर में से लाभ पर जाते समय व सूबेदार जरा हा सिंह के घर गया था | वहां सूबेदार इन ने उसे एकांत में बुलाकर कहां है कि | मेरे पति और बेटे ( बोध ) का ख्याल रखना है | यह मृदा रानी बचपन में अमृत शहर में मिली वही लड़की थी जो लहना सिंह सूबेदार रानी के बात की उस किरण को दुनिया से बचाकर अपने हृदय में सहयोग कर रखा था | युद्ध के अपने मन पर अपने उत्कर्ष की ओर से संचरण करती हुई का गतिशीलता के कारण जबरदस्त अमर डालती रहती है | इस तरह प्रभाव विनीत प्राप्त हुई थी | कर्म से ही एक कुतूहल पाठको प्रभाव में बांध लेता है कि और कहानी को उत्कर्ष बिंदु तक पहुंचाकर ही विराम करता है | किंतु तब कहानी का प्रभाव मन में घूमता रहता है कि उनकी सारी बात याद आ जाती हैं |
तेरी कुड़माई हो गई ? धात गई है देखते नहीं रेशमी बूट वाला शालू अमृतसर में भाव की टकरार से मुरझा खुली है | करवट बदलती है | असली का भाव निकल जाता है | जीरा पानी पिला है | उसने कहा था कि | स्वपन चल रहा है | सूबेदार नहीं कह रही थी कि मैंने तेरे को आते ही पहचाना लिया था | एक काम करती है कि | मेरी तो भाग फूट गए | सरकार ने बहादुरी का खिताब दिला दिया है | रायपुर में जमीन दी है | आज नमक लाली का मौका आया है | पर सरकार ने हम तीनों की लहरें या क्यों बना दी है | जो मैं भी सुविधा के साथ चली जाती है ? एक बेटा है | फौज में भर्ती हुआ है | उसके पीछे चार और हुए हैं | पर एक भी जिंदा नहीं रहा है | सूबेदार नी रोने लगती है | अब दोनों जाते हैं | मेरे भाग | तुम्हें याद है कि 1 दिन टांगेवाला का घोड़ा दही वाले की दुकान के पास बिगड़ गया था | तुमने उस दिन मेरे प्राण बचाए थे | आप घोड़े की तारों में चल गए थे | और मुझे उठा कर दुकान के तख्ते खड़ा कर दिया था | ऐसे ही इन दोनों को बचाना होगा | यह मेरी इच्छा है कि | तुम्हारे आगे मैं आरती रहता हूं |
रोती रोती इसमें दार नी ओवरी में चल गई थी | लाना भी आंसू पूछता हुआ बाहर निकल आता है |
बजीरा सिंह पानी पिला ,, उसने कहा था |