बालकृष्ण भट्ट रचना 
12th Hindi

(बातचीत) Batchit BalKrishana Bhatt objective और सारांस | Bse Study

पाठ-1 बातचीत ( बालकृष्ण भट्ट ) सारांश

Bal Krishna Bhatt Biography in Hindi ) बालकृष्ण भट्ट का जन्म 23 जून 1844 ईस्वी में हुआ था और उनका निधन 20 जुलाई 1914 ईस्वी को हुआ था उनका निवास स्थान इलाहाबाद उत्तर प्रदेश था और उनके माता-पिता का नाम पार्वती देवी एवं बेनी  प्रसाद भट्ट | पिता एक व्यापारी थे और माता एक  सुसंस्कृत महिला जिन्होंने बालकृष्ण भट्ट के मन में अध्ययन की रुचि एवं लालसा  जगाई  शिक्षा प्रारंभिक में संस्कृत का अध्ययन 1867 ईस्वी में  प्रयाग के मिशन स्कूल में एंट्रेंस की परीक्षा दी| वृत्ति 18 69 से 18 75 तक प्रयाग के मिशन स्कूल में अध्यापक | 1885  में  प्रयाग के  सी  ए    स्कूल में सुसंस्कृत का अध्यापक |1888  मे प्रयाग की कायस्थ पाठशाला इंटर कॉलेज में अध्यापक नियुक्त किंतु उग्र स्वभाव के कारण नौकरी छोड़नी पड़ी और उसके बाद से लेखन कार्य पर ही निर्भर रहे | विशेष परिस्थिति पिता के निधि उपरांत पैतृक व्यवहार संभालने के नाम पर   गृह कलह का सामना करना पड़ा | पैतृक घर छोड़कर घोर आर्थिक संकट में झूलते हुए हिम्मत से काम लिया और साहित्य के प्रति समर्पित कर रहे |  रचनात्मक सक्रियता  भारतेंदु हरिश्चंद्र की प्रेरणा से हिंदी वर्धनी सभा प्रयाग की ओर  से 1877  मे हिंदी प्रदीप नामा मासिक पत्र निकालना प्रारंभ किया |  इससे  वे 33 वर्षों तक चलाते रहे |  इनमें नियमित रूप से समाजिक साहित्य नैतिक राजनीतिक विषयों पर निबंध लिखते रहें | 1 881 मेवेदों की युक्ति पूर्ण  समीक्षा की | 1886 मे लाला श्रीनिवास दास के संयोगिता स्वयंवर की कठोर आलोचना की |  जीवन के अंतिम दिनों में हिंदी शब्दकोश के संपादन के लिए श्यामसुंदर दास द्वारा काशी आमंत्रित किंतु अच्छा व्यवहार ना होने पर अलग हो गए |


              बालकृष्ण भट्ट रचना 

 उपन्यास रहस्य कथा नूतन ब्रह्मचारी 100 अजान एक सुजान गुप्त वेरी रसातल यात्रा उचित दक्षिणा हमारी घड़ी सद्भाव का अभाव  नाटक पद्मावती किरातार्जुनीय वेणी संहार  शिशुपाल वध नल दमयंती याद दमयंती स्वयंवर शिक्षा दान चंद्रसेन सीता वनवास पतित पंचम मेघनाथ वध कट्टर उनकी एक नकल गृह नल्ला इंग्लैंड ेश्वरी और भारत जख्मी भारतवर्ष और कलीदो दूरदेशी एक रोकी और एक  वैद्य रेल का टिकट खेल बाल विवाह आदि |  प्रसन्न जैसा काम वैसा परिणाम नई रोशनी का विश्व अचार विखंडन आदि |


 निबंध – 1000 के आसपास निबंध में 100 से ऊपर बहुत  महत्वपूर्ण | भट्ट निबंधमाला नाम से दो खंडों में एक संग्रह प्रकाशित | 

बालकृष्ण भट्ट आधुनिक हिंद गध के आदि निर्माताओं और नायक  रचनाकारों में एक है |  वे भारतेंदु युग के प्रमुख साहित्यकारों में से है |  वह हिंदी के प्रारंभिक युग के प्रमुख और महान पत्रकार निबंधकार तथा हिंदी की आधुनिक आलोचना के प्रवर्तक में आग्रह है  | उन्होंने  आधुनिक हिंदी साहित्य को प्रतिभाशाली जैन धर्मी व्यक्तित्व और लेखन से एक  नवीन धरातल नवीन दिशा और नया रूप रंग और मानस दिया  |  निश्चित ही इस  72 युगांतर कार्य में वह एकाकी नहीं थे, स्वयं भारतेंदु हरिश्चंद्र प्रताप नारायण मिश्र प्रेमघन राधाचरण गोस्वामी जैसी अनेक महान साहित्यकार उनके साथ थे |  किंतु सर्व सम्मत स्थापित मान्यता है कि अपने युग के सर्वाधिक  सर के लिए मुख्य और प्रदीप समय तक सुदृढ़  निष्ठा के साथ तेजस्वी लेखन द्वारा साहित्य सेवा करते  रहने वाले समर्पित साहित्यकार थे बालकृष्ण भट्ट |  भारतेंदु युग के दो तीन प्रमुख साहित्यकारों में एक जिनके अनवर लेखन से भारतेंदु युग का रचनात्मक योग व्यक्तित्व निर्मित हुआ था आगे के द्विवेदी युग का मूलाधार निर्मित हो सका |  साहित्य के बाद कल्पना विलास और  मनोरंजन की वस्तु नहीं है ,  अपितु वह जनसमूह के चित्र के विकास का संवाहक और जन संस्कृति के विकास प्रवाह का मूर्तवार्ड में उत्पादन है जो   वाहन लोग संपरीति   उप जात और दिशा पाता हैबौद्ध पूर्ण प्रधान मान्यता भारतेंदु युग के साहित्य से बनती है और इनके दृष्टि में बालकृष्ण भट्ट प्रमुख है | आधुनिक हिंदी नवजागरण और राष्ट्रीय आंदोलन के दौर में नए सिरे से अपनी भाषा और साहित्य की मौलिक लोकवादी प्राकृतिक एवं जातीय निष्ठा की पहचान करते हुए  अनुरूप दिशा और प्रवाह देने का कार्य जिन महान लेख को ने अपनी रचनात्मक गतिविधियों द्वारा संपन्न किया उनमें भट्ट जी विशेष रूप से स्मरणीय है | बालकृष्ण भट्ट एक  गधकार   अपनी अभिरुचि, मानस  और प्रतिभा से , परिवेश और यथार्थ संपूर्ण  सरोकार रखने वाला  लेखक- पत्रकार थे |  उनके घर गध की भाषा कला की    जड़े भी  परिवेश में ही | यथार्थ में ही थी | लोहार में गुलजार बातचीत और अभिव्यक्ति में    मूर्ति भाषा और करें कि उनके घर का कलेवर बन जाती है | वह नवजागरण और स्वाधीनता संघर्ष का दौर था जिनमें भीतरी और बाहरी स्वदेशी और विदेशी शक्ति से टकराव और  संघर्ष ही जगरूप गद्य लेखक की नियति की थी |  यह टकरावऔर संघर्ष ही जीवन में आंतरिक और तेवर बनकर उभर आता है | भट्ट जी ने हिंदी प्रदीप में पूरे अधूरे अनेक उपन्यास लिखें,  नाटक और प्रसन्न लिखें  किंतु निबंध उनका विद्या है |  जिसमें उनका  अभी प्रयास पूर्ण सुदेश लेखन पूरी शक्ति समर्थ और वैभव के साथ प्रकट हुआ है |   सामाजिक समस्याओं पर उन्होंने जमकर लिखा है | बाल विवाह स्त्री शिक्षा महिला स्वतंत्र राजा प्रजा कृषकों की अवस्था अंग्रेजी  सुशिक्षित तो में परिवर्तन देश सेवा अंधविश्वास आदि विषयों पर उन्होंने खूब लिखा |  विविध मनोभावों और भाषा साहित्य के विषयों पर भी खुलकर लिखा |  व्यक्तित्व व्यंजक   आत्मा कलात्मक निबंध भी उन्होंने इतनी लिखे की उनकी संख्या सैकड़ों में है |  अचार्य रामचंद्र  शुक्ल निबंधकार के रूप में उन्हें अंग्रेजी सहित के एडिशन और स्टील की श्रेणी में रखा है |

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यहां प्रस्तुत बातचीत शीर्षक निबंध के निबंधकार व्यक्तित्व और निबंध कला के साथ-साथ  भाषा शैली का भी प्रतिनिधित्व किया करता  था | 


 Bat chit Bal krishna Bhatt Objective Subjective 

Batchit BalKrishana Bhatt objective 

  • बालकृष्ण भट्ट का जन्म 23 जून 1844 को हुआ 
  • बालकृष्ण भट्ट का  निधन 20 जुलाई 1914 को हुआ 
  • बालकृष्ण भट्ट का निवास स्थान इलाहाबाद उत्तर प्रदेश है 
  • बालकृष्ण भट्ट के माता पिता का नाम  माता का नाम  पार्वती देवी और पिता का नाम बेनी प्रसाद भट्ट था |  माता एक   सूसंस्कृत  महिला थी   और पिता एक व्यापारी थे |
  • बालकृष्ण भट्ट शिक्षा –  शिक्षा के प्रारंभ में संस्कृत का अध्ययन ,1867  में  प्रयास के  एंट्रेंस की परीक्षा दी
  • बालकृष्ण भट्ट की  रचना – उपन्यास रहस्य कथा नूतन ब्रह्मचारी 100 अजान एक सुजान गुप्त वेरी रसातल यात्रा उचित दक्षिणा हमारी घड़ी सद्भाव का अभाव
  • नाटक पद्मावती किरातार्जुनीय वेणी संहार  शिशुपाल वध नल दमयंती याद दमयंती स्वयंवर शिक्षा दान चंद्रसेन सीता वनवास पतित पंचम मेघनाथ वध कट्टर उनकी एक नकल गृह नल्ला इंग्लैंड ेश्वरी और भारत जख्मी भारतवर्ष और कलीदो दूरदेशी एक रोकी और एक  वैद्य रेल का टिकट खेल बाल विवाह आदि | 
  • प्रसन्न जैसा काम वैसा परिणाम नई रोशनी का विश्व अचार विखंडन आदि |

 निबंध – 1000  के आसपास निबंध में 100 से ऊपर बहुत  महत्वपूर्ण |  भट्ट निबंधमाला नाम से दो खंडों में एक संग्रह प्रकाशित 

सच है, जब तक मनुष्य बोलता नहीं   तब तक उसका  गुण- दोस्त प्रकट नहीं होता है यह कहना कि बोलने से ही मनुष्य के रूप का साक्षात्कार होता है  इस बातचीत की सीमा 2 से लेकर वहां तक रखी जा सकती है जहां तक उनकी जमात मीटिंग या सवाना समझ ली जाए असल बातचीत सिर्फ दो व्यक्तियों में हो सकती है जिसका तात्पर्य यह हुआ कि जब दो आदमी होते हैं तभी अपना दिल  एक दूसरे के सामने खोलते हैं |  जब तीन हुए तब    दो की बात कोसों दूर  गई|  कहा भी है कि  6 कानों में पड़ी बात भूल जाती है दूसरे यह कि किसी तीसरे आदमी के आ जाते ही या तो वे दोनों अपनी बातचीत से निरस्त हो बैठेंगे उससे निपट मूर्ख अज्ञानी समन बनाने लगेंगे | 


 Batchit  BalKrishna Bhatt ,Batchit Bal Krishna Bhatt Objective 

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